विकासनगर : प्रदेश में बेरोजगारी का आलम यह हो गया है कि शिक्षित और उच्च शिक्षित युवा छोटी-मोटी 7-8 हजार की नौकरी के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। विकासनगर में जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष और जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने पत्रकारों से बातचीत में सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि आज हालात इतने भयावह हैं कि बेरोजगार युवाओं की चीखें सरकार के कानों तक नहीं पहुंच रही।
सरकार का सारा ध्यान विधायकों के वेतन, भत्तों, पेंशन और उनकी सुख-सुविधाओं पर केंद्रित है, लेकिन जो युवा दिन-रात मेहनत कर अपनी जिंदगी संवारने की कोशिश में जुटे हैं, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। क्या यह वही सरकार है जो विकास और रोजगार के बड़े-बड़े वादे लेकर सत्ता में आई थी?
नेगी ने तंज कसते हुए कहा कि सरकार यूसीसी जैसी नौटंकियों में उलझी हुई है, लेकिन असल मुद्दा—यानी बेरोजगारी और रोजगार सृजन—को पूरी तरह नजरअंदाज कर रही है। उनका कहना था कि अब बहुत हो चुका। विधायकों और मंत्रियों के लिए सुविधाएं जुटाने का सिलसिला बंद होना चाहिए।
अब वक्त है कि सरकार उन युवाओं की ओर देखे, जो सरकारी नौकरियों के अभाव में हताश हो चुके हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर बेरोजगार करे तो क्या करे? जब सरकारी पदों की संख्या न के बराबर रह गई है, तो सरकार के पास इन युवाओं के लिए क्या कार्ययोजना है? क्या सिर्फ वादों और आंकड़ों का खेल ही बचा है?
रघुनाथ सिंह नेगी ने यह भी आरोप लगाया कि विधायक और मंत्री अपने निजी हितों में डूबे हुए हैं। वे अपने अवैध कारोबार को बढ़ाने और आर्थिक साम्राज्य खड़ा करने में व्यस्त हैं, लेकिन बेरोजगारों की चिंता उन्हें छू तक नहीं रही। उन्होंने कहा कि इन युवाओं की पीड़ा के साथ-साथ उनके माता-पिता का दर्द भी सरकार को समझना होगा।
माता-पिता अपनी जिंदगी भर की कमाई बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करते हैं, लेकिन बदले में उन्हें सिर्फ निराशा ही मिलती है। नेगी ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने जल्द ही इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो जन संघर्ष मोर्चा बेरोजगारों के हक में सड़कों पर उतरेगा और जोरदार आंदोलन करेगा।
उन्होंने सुझाव भी दिया कि सरकार को अब नए विकल्प तलाशने चाहिए। जब सरकारी नौकरियां खत्म हो चुकी हैं, तो स्वरोजगार और निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करने पर जोर देना होगा। क्या सरकार के पास ऐसी कोई योजना है? या फिर यह सिर्फ खोखले दावों का दौर है? पत्रकार वार्ता में दिलबाग सिंह और भीम सिंह बिष्ट भी मौजूद थे, जिन्होंने नेगी के विचारों का समर्थन किया।
यह साफ है कि बेरोजगारी का यह मुद्दा अब सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह हर घर की कहानी बन चुका है। अब देखना यह है कि सरकार इस चेतावनी को गंभीरता से लेती है या फिर नौटंकी का खेल जारी रखती है।