देहरादून : देहरादून में वन विभाग की टीम के साथ मारपीट और लूट की सनसनीखेज घटना ने एक बार फिर कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बीते 17 फरवरी को थाना रायवाला में दर्ज हुई शिकायत के बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए मुख्य अभियुक्त नाहर सिंह को गिरफ्तार कर लिया।
यह घटना तब सामने आई जब वन दरोगा मनोज सिंह चौहान ने अपनी तहरीर में बताया कि राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर क्षेत्र में कुछ लोगों ने वन कर्मियों पर हमला किया, उनका मोबाइल छीन लिया और सरकारी काम में बाधा डाली। क्या यह जंगलों की रक्षा करने वालों की सुरक्षा का संकट नहीं है? पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए मुकदमा दर्ज किया और अब अभियुक्त के कब्जे से लूटा गया मोबाइल भी बरामद हो चुका है।
यह घटना कोई साधारण अपराध नहीं थी। थाना रायवाला में दर्ज मुकदमे में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 118(1), 132, 309(1) के साथ-साथ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 और भारतीय वन (उत्तराखंड संशोधन) अधिनियम 2001 की कई धाराएं शामिल की गईं।
इससे साफ है कि मामला सिर्फ मारपीट या लूट तक सीमित नहीं, बल्कि जंगल और वन्यजीवों की सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक देहरादून ने अभियुक्तों की जल्द गिरफ्तारी के लिए सख्त निर्देश दिए थे, जिसके बाद पुलिस ने स्थानीय मुखबिरों की मदद से नाहर सिंह को धर दबोचा। 65 वर्षीय यह अभियुक्त गंगा सूरजपुर कॉलोनी का निवासी है और उसके पास से रियलमी कंपनी का हरा मोबाइल फोन बरामद हुआ, जो घटना के दौरान छीना गया था।
पुलिस की यह कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन सवाल अब भी बाकी हैं। आखिर वन कर्मियों पर हमले की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं? क्या यह जंगलों पर बढ़ते दबाव और अवैध गतिविधियों का नतीजा है? पुलिस टीम, जिसमें उपनिरीक्षक विनय शर्मा, अ0उ0नि0 योगेंद्र कुमार, हेड कांस्टेबल सुधीर सैनी और कांस्टेबल आनंद शामिल थे, ने गोडविन होटल के पास से अभियुक्त को पकड़ा।
इस सफलता ने न सिर्फ कानून का पालन सुनिश्चित किया, बल्कि वन विभाग के कर्मियों में भी विश्वास जगाया। फिर भी, यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि जंगलों की रक्षा करने वालों की अपनी सुरक्षा कितनी जरूरी है।