देहरादून : देहरादून से लेकर नेपाल के महेंद्रनगर तक, भारत और नेपाल के बीच संबंधों को मजबूत करने की एक नई पहल की चर्चा जोरों पर है। उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने हाल ही में नेपाल के महेंद्रनगर में आयोजित “16वें सुदूर पश्चिम प्रदेश स्तरीय औद्योगिक व्यापार मेला तथा कंचनपुर पर्यटन महोत्सव” में हिस्सा लिया।
इस मौके पर उन्होंने दोनों देशों के बीच हवाई सेवाओं के विस्तार और पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत पर जोर दिया। उनका कहना था कि अगर नेपाली यात्रियों के लिए भारत में प्रवेश की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए, तो न सिर्फ आपसी सदभाव बढ़ेगा, बल्कि पर्यटन और आर्थिक संबंधों में भी नई ऊंचाइयां छूई जा सकती हैं। क्या यह कदम वास्तव में दोनों देशों के बीच की दूरी को कम कर सकता है? यह सवाल हर किसी के मन में कौंध रहा है।
महाराज ने अपने संबोधन में धार्मिक पर्यटन पर खास ध्यान दिया। उन्होंने कहा कि नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर और भारत के केदारनाथ धाम, वाराणसी, हरिद्वार जैसे तीर्थस्थलों को जोड़ने वाला एक धार्मिक सर्किट बनाया जाए तो दोनों देशों के श्रद्धालुओं के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं होगा।
इसके अलावा, हवाई सेवाओं का विस्तार न सिर्फ यात्रा को सुगम बनाएगा, बल्कि व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी प्रोत्साहन देगा। सोचिए, अगर देहरादून से महेंद्रनगर तक सीधी उड़ान शुरू हो जाए, तो कितने लोग आसानी से इन खूबसूरत जगहों का लुत्फ उठा सकेंगे। यह विचार अपने आप में रोमांचक है, है ना?
इस मेले में उत्तराखंड पर्यटन का स्टॉल लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा। यहां नेपाल के सुदूर पश्चिम क्षेत्र की कृषि और दुग्ध उत्पादों की झलक देखने को मिली, तो दूसरी ओर उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत भी प्रदर्शित हुई। महाराज ने इस बात पर भी बल दिया कि ऐसे आयोजनों से दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
नेपाल के उद्योग, वाणिज्य और आपूर्ति मंत्री दामोदर भंडारी सहित कई बड़े नेता इस मौके पर मौजूद थे, जिससे इस आयोजन की अहमियत और बढ़ गई। यह मेला न सिर्फ व्यापार और पर्यटन का मंच बना, बल्कि दोनों देशों के बीच दोस्ती का एक नया अध्याय भी शुरू करने की कोशिश नजर आई।
हालांकि, सवाल यह भी उठता है कि क्या ये योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित रहेंगी या सचमुच जमीन पर उतरेंगी? हवाई सेवाओं का विस्तार और प्रवेश प्रक्रिया को सरल बनाने जैसे कदमों के लिए दोनों देशों की सरकारों को मिलकर काम करना होगा। अगर ऐसा हुआ तो निश्चित रूप से भारत-नेपाल संबंधों में एक नई मिसाल कायम हो सकती है।
इस मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने भी लोगों का मन मोह लिया, जिससे यह साफ हो गया कि दोनों देशों की साझा संस्कृति ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में यह पहल कितनी रंग लाती है।