Uttarakhand News : उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर में गुरुवार को प्रशासन ने अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कदम उठाया। कुंडेश्वरी क्षेत्र में सरकारी सीलिंग भूमि पर बनी पांच अवैध मजारों को उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार के निर्देश पर बुल्डोजर से ढहा दिया गया।
सुबह तड़के प्रशासन और पुलिस की भारी मौजूदगी में यह कार्रवाई पूरी की गई। यह कदम न केवल कानून की सख्ती को दर्शाता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि सरकारी संपत्ति पर कब्जे की कोई गुंजाइश नहीं बचेगी।
कुंडेश्वरी में अवैध निर्माण पर नकेल
काशीपुर के कुंडेश्वरी क्षेत्र में सरकारी आम बाग की सीलिंग भूमि पर पांच धार्मिक संरचनाएं, यानी मजारें, अवैध रूप से बनाई गई थीं। प्रशासन ने इनके खादिमों को 15 दिन पहले नोटिस जारी कर निर्माण से संबंधित दस्तावेज पेश करने को कहा था। लेकिन कोई भी खादिम वैध कागजात नहीं दिखा सका।
इसके बाद काशीपुर के एसडीएम अभय प्रताप सिंह के नेतृत्व में गुरुवार सुबह इन संरचनाओं को हटा दिया गया। हैरानी की बात यह रही कि इन मजारों के नीचे कोई धार्मिक अवशेष या सामग्री नहीं मिली, जिससे यह साफ हो गया कि ये निर्माण पूरी तरह अवैध थे। एसडीएम अभय प्रताप सिंह ने बताया, “कुंडेश्वरी की सरकारी जमीन पर बनी इन मजारों को हटाने से पहले दस्तावेज मांगे गए थे। दो हफ्ते तक कोई कागजात पेश नहीं हुआ, इसलिए कार्रवाई की गई।”
उत्तराखंड में अवैध कब्जों के खिलाफ अभियान
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने अवैध मजारों और मदरसों के खिलाफ सख्त अभियान छेड़ रखा है। अब तक पूरे प्रदेश में 537 अवैध मजारों को हटाया जा चुका है। धामी सरकार ने साफ कर दिया है कि देवभूमि में सरकारी जमीन पर हरी-नीली चादरों के सहारे कब्जे की कोशिशों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
काशीपुर की यह कार्रवाई भी इसी अभियान का हिस्सा है, जो कानून के दायरे में रहकर शांतिपूर्ण ढंग से पूरी की गई। स्थानीय लोगों ने इस कदम का स्वागत किया है, क्योंकि ऐसी संरचनाओं के चलते कई बार सार्वजनिक सुविधाएं और रास्ते प्रभावित होते हैं।
कानून और व्यवस्था की जीत
कुंडेश्वरी की यह सरकारी जमीन वर्षों से रिकॉर्ड में सीलिंग भूमि के रूप में दर्ज है, जहां कोई निजी या धार्मिक निर्माण की अनुमति नहीं है। फिर भी, योजनाबद्ध तरीके से इन मजारों को खड़ा किया गया था, ताकि भविष्य में इन्हें स्थायी धार्मिक स्थल घोषित कर कब्जे को वैध बनाया जा सके।
लेकिन प्रशासन की चौकसी ने इस बार ऐसी कोशिशों को नाकाम कर दिया। कार्रवाई के दौरान किसी भी तरह का विरोध नहीं हुआ, और माहौल को शांत रखने के लिए कोई धार्मिक सामग्री भी नहीं मिली। यह कदम न केवल सरकारी जमीन को मुक्त कराने में सफल रहा, बल्कि यह भी दिखाता है कि उत्तराखंड में अब अवैध कब्जों के खिलाफ कोई रियायत नहीं बरती जाएगी।