11 Aug 2025, Mon

Uttarakhand News : उत्तराखंड में वनाधिकार कानून 2006 का हश्र, 19 साल में केवल 6 ग्रामों को मिला राजस्व ग्राम दर्जा

जफर अंसारी, लालकुआं : जैसे-जैसे उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, क्षेत्र की समस्याओं को लेकर जनप्रतिनिधियों की सक्रियता बढ़ती जा रही है।

इसी कड़ी में बिंदुखत्ता को राजस्व गांव का दर्जा दिलाने और वन अधिकार अधिनियम 2006 (Forest Rights Act) के तहत लंबित मुद्दों को उठाने के लिए जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष और नैनीताल दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ के पूर्व डायरेक्टर प्रमोद कॉलोनी ने हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदेश और उत्तराखंड विधानसभा में उपनेता भुवन कापड़ी से मुलाकात की। उन्होंने आगामी विधानसभा सत्र में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की मांग की है।

वन अधिकार अधिनियम

प्रमोद कॉलोनी ने बताया कि साल 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने वन अधिकार अधिनियम पारित किया था। इस कानून का मकसद पीढ़ियों से वनभूमि पर आश्रित समुदायों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना था। लेकिन 19 साल बीत जाने के बाद भी उत्तराखंड में इस कानून का लाभ वनाश्रित समुदायों तक नहीं पहुंच पाया है। उत्तराखंड, जहां 71 प्रतिशत वन क्षेत्र है और देश में सबसे ज्यादा वन कवर वाला राज्य है, वहां वनाश्रितों की संख्या भी काफी है। फिर भी इस दिशा में प्रगति शून्य के बराबर है।

देश में प्रगति, उत्तराखंड में ठहराव

उन्होंने बताया कि देशभर में अब तक वन अधिकार अधिनियम के तहत करीब 25 लाख दावों को मंजूरी मिल चुकी है। इसके तहत दो करोड़ बत्तीस लाख एकड़ वनभूमि पर वनाश्रितों को अधिकार पत्र दिए गए हैं। साथ ही, 1600 से ज्यादा वन ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा मिल चुका है। लेकिन उत्तराखंड में स्थिति निराशाजनक है। यहां मात्र 185 दावों को स्वीकृति मिली है और केवल 6 ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया गया है। हैरानी की बात यह है कि किसी भी वनाश्रित को एक इंच जमीन का मालिकाना हक नहीं मिला है।

जागरूकता की कमी, अधिकारों का हनन

प्रमोद कॉलोनी ने बताया कि नैनीताल, उधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून जैसे कई जिलों में सैकड़ों सालों से रह रहे वनाश्रित समुदायों को इस कानून का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसका बड़ा कारण अधिकारियों और आम जनता में जागरूकता की कमी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस मुद्दे को विधानसभा में उठाना जरूरी है ताकि उत्तराखंड सरकार की जवाबदेही तय हो और लोगों में वन अधिकार कानून के प्रति जागरूकता बढ़े। इससे भविष्य में वनाश्रित समुदाय अपने हक हासिल कर सकेंगे।

विधानसभा में होगी जोरदार चर्चा

प्रमोद कॉलोनी ने सुमित हृदेश और भुवन कापड़ी से अनुरोध किया कि वे इस मुद्दे को विधानसभा में न केवल उठाएं, बल्कि इसके साथ जुड़े सवाल भी पूछें। उन्होंने देशभर में वन अधिकार अधिनियम के तहत बनाए गए राजस्व ग्रामों और स्वीकृत दावों का राज्यवार विवरण, जनजाति मंत्रालय के 8 नवंबर 2013 के पत्र और इस कानून से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं को भी विधानसभा में पेश करने की मांग की है।

By Ganga

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