देहरादून :वीर माधो सिंह भंडारी उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय में फर्जी डिग्री, भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं के मामले ने छात्रों और शासन को आमने-सामने ला दिया है। डी.ए.वी. छात्र संघ अध्यक्ष सिद्धार्थ अग्रवाल के नेतृत्व में पिछले दो हफ्तों से छात्र इस अन्याय के खिलाफ सड़कों पर हैं।
शासन की जांच समिति ने कुलपति डॉ. ओमकार सिंह पर गंभीर आरोपों की पुष्टि की है, जिसमें अपने गृह जनपद की एक ईआरपी कंपनी को करोड़ों रुपये दिलवाने में साठगांठ शामिल है। इसके बावजूद, कुलपति सबूतों को दबाने और अपने प्रभाव से मामले को रफा-दफा करने की कोशिश में जुटे हैं, जिससे छात्रों का गुस्सा भड़क उठा है।
छात्रों ने एनएसयूआई के साथ मिलकर शासन की रिपोर्ट के आधार पर कई मांगें उठाई हैं। पहली मांग है कि कुलपति डॉ. ओमकार सिंह और परीक्षा नियंत्रक डॉ. वी.के. पटेल को तुरंत बर्खास्त किया जाए, क्योंकि उनकी मौजूदगी से सबूतों के साथ छेड़छाड़ का खतरा बढ़ रहा है।
दूसरी मांग में विश्वविद्यालय के 6 करोड़ रुपये के घोटाले की वसूली और दोषियों, जिसमें गोपेश्वर इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक अमित अग्रवाल भी शामिल हैं, के खिलाफ ईडी से जांच की बात कही गई है। अमित अग्रवाल पर एक ही दिन में दो डिग्रियां जारी करने का गंभीर आरोप है, जो कानूनन अपराध है। छात्रों ने मांग की है कि उन्हें पद से हटाकर सख्त कार्रवाई की जाए।
इसके अलावा, वर्तमान ईआरपी सिस्टम को बंद कर केंद्र सरकार के मुफ्त समर्थ पोर्टल को लागू करने की मांग भी जोर पकड़ रही है। ऑनलाइन मूल्यांकन में पारदर्शिता की कमी और शिक्षकों को पिछले भुगतानों में देरी के चलते रिजल्ट में देरी हो रही है। छात्रों का कहना है कि 2022 से अब तक ऑनलाइन मूल्यांकन से असंतुष्ट छात्रों से 3000 रुपये वसूले जा रहे हैं, फिर भी उनकी शिकायतों का समाधान नहीं हो रहा। इसके लिए विश्वविद्यालय से नोटिस जारी कर मुफ्त कैंप लगाने की मांग की गई है।
छात्र संघ ने बैक पेपर और डिग्री पूरी करने में देरी से परेशान छात्रों के लिए एक साल का अतिरिक्त समय देने की भी अपील की है। कुछ छात्रों ने इस तनाव में आत्महत्या तक की बात सोची है, जिसे संवेदनशीलता से हल करने की जरूरत है। साथ ही, विशेषज्ञों से 20,000 रुपये वसूलकर उन्हें सिर्फ 5,000 रुपये देने की लूट को बंद करने की मांग भी उठी है।
सिद्धार्थ अग्रवाल ने चेतावनी दी, “छात्रों के हितों से समझौता बर्दाश्त नहीं होगा। अगर मांगें पूरी न हुईं, तो बड़ा आंदोलन होगा, जिसकी जिम्मेदारी शासन की होगी।” यह मामला न सिर्फ विश्वविद्यालय की साख पर सवाल उठाता है, बल्कि छात्रों के भविष्य को भी दांव पर लगा रहा है।