19 May 2025, Mon

Almora News : अल्मोड़ा में बंदरों की बस्ती? जानिए क्यों दहशत में हैं बच्चे, बुज़ुर्ग और महिलाएं!

Almora News : अल्मोड़ा, उत्तराखंड का एक खूबसूरत पहाड़ी शहर, जो अपनी शांति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, आज एक अनोखे संकट से जूझ रहा है। यह संकट न तो प्राकृतिक आपदा है, न ही कोई आर्थिक समस्या, बल्कि यह है बंदरों की बढ़ती तादाद, जो अब स्थानीय लोगों के लिए खतरे का सबब बन चुकी है। सड़कों पर दौड़ते बंदर, छतों पर कब्जा जमाए हुए समूह, और बच्चों व बुजुर्गों में डर का माहौल—यह सब अब अल्मोड़ा की नई हकीकत बन चुका है। इस गंभीर मुद्दे को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे ने प्रशासन के सामने जोरदार आवाज बुलंद की है।

जिलाधिकारी से मुलाकात 

हाल ही में, संजय पाण्डे ने प्रभारी जिलाधिकारी देवेश शासनि से उनके कार्यालय में मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने एक ज्ञापन सौंपकर बंदरों की समस्या को गंभीरता से लेने की मांग की। उनके साथ रामशिला वार्ड के पार्षद नवीन चंद्र आर्य, जिन्हें स्थानीय लोग प्यार से ‘बबलू भाई’ कहते हैं, भी मौजूद थे। इस मुलाकात में संजय ने साफ शब्दों में कहा कि अल्मोड़ा अब एक शहर कम और जंगल ज्यादा लगने लगा है। उन्होंने बताया कि बच्चे स्कूल जाने से डरते हैं, महिलाएं मंदिर जाने से पहले छतों की ओर देखती हैं, और बुजुर्गों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। 

संजय ने प्रशासन से कई सवाल पूछे। आखिर बंदरों को ट्रकों में भरकर पहाड़ों में क्यों छोड़ा जा रहा है? क्या यह किसी सुनियोजित साजिश का हिस्सा है? अगर कोई अनहोनी होती है, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? उनके सवाल न केवल गंभीर थे, बल्कि अल्मोड़ा के हर नागरिक की चिंता को दर्शाते थे।

पांच मांगें, सात दिन का अल्टीमेटम

इस मुलाकात में संजय पाण्डे ने प्रशासन के सामने पांच ठोस मांगें रखीं। पहली, इस समस्या की गहराई तक जांच के लिए एक विशेष समिति बनाई जाए। दूसरी, नगर निगम, वन विभाग और पुलिस मिलकर बंदरों को पकड़ने का अभियान शुरू करें। तीसरी, शहर के बाहरी इलाकों में निगरानी चौकियां स्थापित हों। चौथी, वन विभाग हर महीने अपनी प्रगति की रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंपे। और पांचवीं, पुरानी शिकायतों की दोबारा जांच हो और लापरवाह अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। 

उन्होंने सात दिन का समय देते हुए चेतावनी दी कि अगर इस दौरान कोई कदम नहीं उठाया गया, तो यह मामला मुख्यमंत्री, राज्यपाल, उच्च न्यायालय, मानवाधिकार आयोग और मीडिया तक ले जाया जाएगा। संजय ने इसे केवल एक शिकायत नहीं, बल्कि अल्मोड़ा की आत्मा की पुकार बताया। 

पार्षद की चिंता 

रामशिला वार्ड के पार्षद नवीन चंद्र आर्य ने भी इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यह समस्या किसी एक गली या मोहल्ले तक सीमित नहीं है। यह पूरे अल्मोड़ा की आपदा बन चुकी है। अगर प्रशासन ने जल्द कदम नहीं उठाए, तो हालात और बिगड़ सकते हैं। नवीन ने स्थानीय लोगों की परेशानियों का जिक्र करते हुए प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग की।

अल्मोड़ा के लिए एक जागरूकता की लहर

यह पहली बार नहीं है जब अल्मोड़ा में बंदरों की समस्या ने सुर्खियां बटोरी हैं। लेकिन संजय पाण्डे और नवीन चंद्र आर्य जैसे लोग इस मुद्दे को केवल चर्चा तक सीमित नहीं रखना चाहते। उनका मानना है कि यह एक ऐसी लड़ाई है, जिसमें हर नागरिक की भागीदारी जरूरी है। बंदरों की बढ़ती संख्या न केवल जनसुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि यह शहर की शांति और संस्कृति को भी प्रभावित कर रही है। 

क्या है समाधान?

इस समस्या का समाधान इतना आसान नहीं है। बंदरों को पकड़कर जंगल में छोड़ना एक अस्थायी उपाय हो सकता है, लेकिन यह लंबे समय तक कारगर नहीं होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए वन विभाग, प्रशासन और स्थानीय लोगों को मिलकर एक ठोस रणनीति बनानी होगी। साथ ही, जंगल में बंदरों के लिए पर्याप्त भोजन और पानी की व्यवस्था करनी होगी, ताकि वे शहरों की ओर न आएं। 

अल्मोड़ा की आवाज को बुलंद करने का समय

अल्मोड़ा आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां उसकी शांति और सुंदरता को बचाने की जिम्मेदारी हर नागरिक की है। संजय पाण्डे ने जो आवाज उठाई है, वह केवल उनकी नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है, जो इस शहर से प्यार करता है। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है? या फिर अल्मोड़ा सचमुच बंदरों की बस्ती बनकर रह जाएगा?

By Ganga

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *