देहरादून: उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री और जिला सहकारी बैंक देहरादून के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के.एस. राणा ने भाजपा सरकार पर सहकारी समितियों के चुनाव में अनियमितता का गंभीर आरोप लगाया है। देहरादून स्थित कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश पर सहकारी समितियों के चुनाव शुरू हुए थे, लेकिन सरकार ने पुराने सदस्यों को मतदान से रोकने का फरमान जारी कर दिया।
इसके खिलाफ कुछ सहकारी सदस्यों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद उच्च न्यायालय ने पुरानी व्यवस्था से चुनाव कराने का निर्देश दिया। लेकिन भाजपा सरकार ने अदालत की अवमानना करते हुए नई व्यवस्था लागू की और 2021 से पहले के सदस्यों को लेन-देन न होने की वजह से वोटिंग से वंचित कर दिया, जबकि 2021 के बाद के सदस्यों को इससे छूट दी गई।
चुनाव घोषणा और अचानक रद्द होने का विवाद
डॉ. राणा ने बताया कि 11 फरवरी 2025 को चुनाव कार्यक्रम घोषित हुआ, जिसमें 24 और 25 फरवरी को मतदान तय हुआ। 24 फरवरी को संचालक मंडल का चुनाव संपन्न हुआ, लेकिन 25 फरवरी को होने वाले अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और प्रतिनिधियों के चुनाव को रात 10 बजे अचानक स्थगित कर दिया गया।
सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण से कारण पूछने पर कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने कहा कि सहकारी समिति अधिनियम के नियम 17 में साफ लिखा है कि एक बार चुनाव शुरू होने के बाद इसे रोका नहीं जा सकता, फिर भी सरकार ने मनमानी कर नियमों और अदालत के आदेशों की धज्जियां उड़ा दीं।
मतदान समय में बदलाव और नियमों की अनदेखी
डॉ. राणा ने यह भी खुलासा किया कि 24 फरवरी के मतदान का समय बिना सूचना के सुबह 9 बजे से बदलकर 11 बजे कर दिया गया, जो पहले घोषित कार्यक्रम के खिलाफ था। उन्होंने कहा कि सहकारी समिति अधिनियम की धारा 34 के तहत सरकार हर समिति में दो प्रतिनिधि नियुक्त कर सकती है, जिसमें एक सरकारी कर्मचारी होगा जिसे वोटिंग का अधिकार नहीं होगा। मगर भाजपा सरकार ने इस नियम को तोड़ते हुए बहुमत हासिल करने के लिए मनमाने तरीके से कई लोगों को शामिल करने की कोशिश की।
कांग्रेस का सरकार पर निशाना
डॉ. राणा ने कहा कि यह घटना भाजपा सरकार की हठधर्मिता और निरंकुशता का सबूत है। सहकारी समितियों के साथ खिलवाड़ न सिर्फ लोकतंत्र के खिलाफ है, बल्कि आम लोगों के हक को भी छीन रहा है। इस मौके पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बीरेंद्र पोखरियाल, मानवेंद्र सिंह, गरिमा माहरा दसौनी, सुजाता पॉल और अन्य मौजूद रहे। यह मामला अब चर्चा का विषय बन गया है, और विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सहकारी क्षेत्र में भरोसा कम हो सकता है।