20 May 2025, Tue

उत्तराखंड भू कानून: धामी सरकार की नई नीति पर गरिमा दसौनी ने उठाए सवाल

देहरादून: उत्तराखंड में लंबे समय से भू कानून को लेकर चल रही बहस के बीच राज्य सरकार ने आखिरकार कैबिनेट में इसे हरी झंडी दे दी है। यह फैसला राज्य की भूमि को संरक्षित करने और अवैध भूमि सौदों पर रोक लगाने के उद्देश्य से लिया गया है। लेकिन इस पर राजनीतिक प्रतिक्रिया भी तेज हो गई है। कांग्रेस नेता गरिमा मेहरा दसौनी ने धामी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कई तीखे सवाल उठाए हैं।

भू कानून की आवश्यकता क्यों?

दसौनी का कहना है कि उत्तराखंड की भूमि लगातार बाहरी लोगों के हाथों बिकती जा रही है, जिससे राज्य का पारिस्थितिक संतुलन और सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि बीते 24 वर्षों में भाजपा सरकारों की नीतियों ने भूमि की अंधाधुंध खरीद-फरोख्त को बढ़ावा दिया, जिससे आज राज्य की अधिकांश उपजाऊ और महत्वपूर्ण ज़मीनें बाहरी लोगों के कब्जे में चली गई हैं।

उन्होंने कहा, “आज उत्तराखंड एक बड़े लैंड बैंक संकट से जूझ रहा है। यह केवल जमीन का नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व का सवाल बन गया है।”

राज्य गठन से लेकर अब तक क्या बदला?

गरिमा मेहरा दसौनी ने उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से भूमि नीतियों में हुए बदलावों का उल्लेख किया:

  • 2000: भाजपा की अंतरिम सरकार भूमि संपत्तियों के सही बंटवारे में विफल रही, जिसके चलते आज भी उत्तराखंड की करोड़ों-अरबों की भूमि उत्तर प्रदेश के कब्जे में है।
  • 2002-2017: कांग्रेस और भाजपा की विभिन्न सरकारों ने भूमि खरीद-फरोख्त पर सख्त नियम लागू किए, जिससे अवैध कब्जे पर कुछ हद तक रोक लगी।
  • 2018: त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने भू कानून में संशोधन कर बाहरी निवेशकों और भूमि माफियाओं को खुली छूट दे दी।

त्रिवेंद्र सरकार के फैसले पर सवाल

दसौनी ने कहा कि धामी सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वह त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय बेची गई जमीन को वापस लेगी? उन्होंने आरोप लगाया कि 2017-2021 के बीच “ट्रिपल इंजन” सरकार के दौरान राज्य की भूमि को खुली लूट और भू माफियाओं के हवाले कर दिया गया।

उन्होंने कहा, “क्या धामी सरकार उन सौदों की समीक्षा करेगी, जिनमें बाहरी कंपनियों और प्रभावशाली लोगों को अवैध रूप से जमीन बेची गई थी?”

लैंड यूज में बदलाव पर आपत्ति

गरिमा ने सरकार पर एक और गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि धामी सरकार ने भूमि उपयोग नियमों में बदलाव कर निवेशकों को अधिक छूट दी, जिससे राज्य की भूमि असुरक्षित हो गई। पहले के नियमों के तहत खरीदी गई जमीन का उपयोग दो साल के भीतर करना अनिवार्य था, अन्यथा वह सरकार को वापस चली जाती थी। लेकिन नए बदलावों के तहत इस प्रावधान को हटा दिया गया है।

“क्या सरकार इस निर्णय को भी वापस लेगी?” – दसौनी ने सवाल किया।

नए जिलों के लिए भूमि नहीं, पर रिसॉर्ट और होटल?

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार नए जिलों की बात तो करती है, लेकिन जमीन उपलब्ध नहीं है। वहीं, सत्ता में बैठे मंत्री और विधायक प्रतिबंधित भूमि पर रिसॉर्ट और होटल बना रहे हैं। दसौनी ने मांग की कि इस पर सरकार कार्रवाई करे और दोषियों पर जुर्माना लगाए।

हिमाचल की तरह सख्त भू कानून की जरूरत

दसौनी ने कहा कि उत्तराखंड के पास अब बहुत कम भूमि बची है और इसे बचाने के लिए हिमाचल प्रदेश से भी सख्त भू कानून की जरूरत है। उन्होंने कहा, “हिमाचल समय रहते चेत गया और अपनी भूमि को बचा लिया, लेकिन उत्तराखंड की हालत इससे भी ज्यादा गंभीर है।”

भविष्य तय करेगा कानून की सख्ती

अब सवाल यह है कि धामी सरकार का नया भू कानून कितना प्रभावी होगा? क्या यह राज्य की भूमि को सुरक्षित कर पाएगा, या यह सिर्फ एक राजनीतिक फैसला बनकर रह जाएगा? इसका जवाब आने वाले समय में मिलेगा।

By Ganga

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