न्यूज डेस्क, दून हॉराइज़न, नई दिल्ली
नसंबदी गर्भनिरोधक का स्थाई तरीका है। पुरुषों के मुकाबले महिलाएं भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। लेकिन बांदा में नसबंदी कराने वाली आठ महिलाओं के साथ धोखा हो गया। नसबंदी के बाद भी उनके गर्भ ठहर गया।
पीड़िताओं ने इसकी शिकायत सीएमओ ऑफिस में की। जांच-पड़ताल में मामला सही मिला। अब स्वास्थ्य विभाग अपनी इस खामी को छिपाने के लिए पीड़िताओं को 60-60 हजार रुपये सरकारी मदद दिलाने की फाइल बनाने में जुटा है।
मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल महिला और पुरुष, स्वास्थ्य केंद्र नरैनी, बबेरू, बिंसडा, कमासिन, महोखर, बड़ोखर, तिंदवारी और जसपुरा में महिला और पुरुष नसबंदी के लिए हर साल टारगेट निर्धारित होता है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो पुरुषों के मुकाबले महिलाएं नसबंदी में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। नसबंदी करा महिलाएं बेफिक्र हो जाती है लेकिन नसबंदी में धोखा भी हो रहा है।
नसबंदी करानेवाली आठ महिलाओं के साथ ऐसा ही हुआ है। नसबंदी के बाद भी उनके गर्भ ठहर गया। स्वास्थ्य केंद्र बबेरू से तीन, बिसण्डा से दो, बड़ोखर, कमासिन और जिला अस्पताल से एक-एक डिफाल्टर मामले सामने आए हैं।
स्वास्थ्य विभाग अब इन पीड़ित महिलाओं की फाइल बनाकर उन्हें हर्जाने के रूप में 60-60 हजार रुपये की सरकारी मदद दिलाने की कशमकश में लगा है।
नसबंदी कराए जाने के बावजूद महिलाएं गर्भवती हो रही हैं। इससे साफ जाहिर है कि महिलाओं की नसबंदी किए जाने के दौरान चिकित्सकों के द्वारा लापरवाही की गई। इसके चलते शिविर आयोजित कर की जाने वाली नसबंदी से महिलाओं का भरोसा उठता जा रहा है। कहा कि स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सक ही फैमिली प्लानिंग प्रक्रिया को पलीता लगा रहे हैं।