हिसार :हरियाणा में कांग्रेस का किला अब पूरी तरह से चरमरा गया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी पकड़ को और सख्त कर लिया है। शहरी मतदाताओं का दिल एक बार फिर भाजपा ने जीत लिया, वहीं जाट और अनुसूचित जाति के वोटरों ने भी कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया।
प्रदेश के दस नगर निगमों में से नौ में भाजपा ने अपनी जीत का परचम लहराया, जिससे साफ हो गया कि शहरी इलाकों में उसकी लोकप्रियता बरकरार है। दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए यह चुनाव निराशाजनक रहा, खासकर रोहतक और सोनीपत जैसे उसके मजबूत गढ़ों में, जहां हुड्डा गुट मेयर का पद भी हासिल नहीं कर सका।
कांग्रेस इस बार बिना तैयारी और कमजोर संगठन के साथ मैदान में उतरी थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि निकाय चुनाव में उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा। दूसरी तरफ, भाजपा पहले से भी ज्यादा ताकतवर बनकर उभरी। जीटी बेल्ट और अहीरवाल जैसे क्षेत्रों में उसकी स्थिति और मजबूत हुई।
मानेसर को छोड़कर सभी नगर निगमों में भाजपा ने कब्जा जमाया। मानेसर में निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई, लेकिन इसके पीछे कांग्रेस का कोई योगदान नहीं था। वहां केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के प्रभाव ने निर्दलीय को कामयाबी दिलाई।
कुमारी सैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे कांग्रेस के बड़े चेहरों का जादू इस बार फीका पड़ गया। पार्टी का प्रचार कमजोर रहा और संगठन में एकजुटता की कमी साफ दिखी। विधानसभा चुनाव में जाट और अनुसूचित जाति के मतदाता कांग्रेस के साथ नजर आए थे, लेकिन इस बार वे भी साथ छोड़ गए। रोहतक में हुड्डा ने खूब जोर लगाया, पर दस साल तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद वे अपने गढ़ में मेयर का चुनाव नहीं जीत सके।
सिरसा में सैलजा भी नाकाम रहीं। उनके पिता चौधरी दलबीर सिंह केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं और सैलजा खुद सिरसा से तीन बार सांसद बन चुकी हैं, लेकिन इस बार वे अपने इलाके में कांग्रेस को जीत नहीं दिला पाईं।
भाजपा ने इस चुनाव में अपनी ताकत को और बढ़ाया। पूरे हरियाणा में कमल खिल गया। जीटी बेल्ट में उसकी पहले से मजबूत पकड़ थी, और राव इंद्रजीत के साथ आने से अहीरवाल भी उसका गढ़ बन गया। रोहतक और सोनीपत में, जहां कांग्रेस का दबदबा रहता था, भाजपा ने सधी हुई रणनीति और संगठन की मजबूती से बाजी मार ली।
सिरसा में भी उसने कांग्रेस के किले में सेंध लगा दी। पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में सिरसा में हार का सामना करने वाली भाजपा ने इस बार इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। भावनात्मक अपील और कांडा बंधुओं के सहयोग से उसने सैलजा के गढ़ में जीत हासिल की। कांग्रेस के विधायक गोकुल सेतिया अकेले पड़ गए, और जाट व अनुसूचित जाति के वोटरों ने भी भाजपा का साथ दिया।