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मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक? पसमांदा मुस्लिम को मंत्री बनाकर विपक्ष को देंगे करारा जवाब

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नई दिल्ली :सियासी हलचल एक बार फिर तेज हो गई है। वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के लागू होने के साथ ही केंद्र की मोदी सरकार विपक्ष और मुस्लिम संगठनों के निशाने पर आ गई है। इस कानून को लेकर विरोध की आवाजें अब और तेज हो चली हैं। कई मुस्लिम संगठन इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं और इसे अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों पर कुठाराघात बता रहे हैं। सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक, इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है। लेकिन क्या यह कानून वाकई इतना विवादास्पद है, या फिर इसके पीछे कुछ और सियासी समीकरण छिपे हैं? यह सवाल हर किसी के मन में कौंध रहा है।  

मंत्रिमंडल में मुस्लिम चेहरों की कमी पर सवाल

इसी बीच एक और मुद्दा सुर्खियों में है, जो राजनीतिक गलियारों में गूंज रहा है। केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की कमी को लेकर विपक्ष लगातार हमलावर है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसे लेकर बीजेपी पर तंज कस रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार का “सबका साथ, सबका विकास” का नारा खोखला साबित हो रहा है। इस मुद्दे ने न केवल सियासी बहस को हवा दी है, बल्कि आम लोगों के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है।  

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सरकार की नई रणनीति 

विपक्ष के तीखे हमलों के बीच बीजेपी ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है। सूत्रों की मानें तो मई से जुलाई 2025 के बीच केंद्रीय मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल हो सकता है। खास बात यह है कि इस बार सरकार पसमांदा मुस्लिम समुदाय से किसी नेता को मंत्रिमंडल में शामिल करने की योजना बना रही है। यह कदम न केवल विपक्ष के आरोपों का जवाब देने के लिए है, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के बीच बीजेपी की पैठ को और मजबूत करने की दिशा में भी एक बड़ा प्रयास माना जा रहा है।  

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कौन होंगे मंत्रिमंडल का नया चेहरा?

सियासी गलियारों में दो नामों की चर्चा जोरों पर है। पहला नाम है गुलाम अली खटाना का, जो जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा सांसद हैं और पसमांदा समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरा नाम है जमाल सिद्दीकी का, जो बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और महाराष्ट्र से ताल्लुक रखते हैं। अगर सिद्दीकी को मंत्रिमंडल में जगह मिलती है, तो उन्हें राज्यसभा की सीट भी दी जा सकती है। माना जा रहा है कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में किसी एक को जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।  

क्या होगा इस कदम का असर?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम बीजेपी के लिए कई मायनों में अहम साबित हो सकता है। एक तरफ, यह विपक्ष के उन आरोपों को कमजोर करेगा, जो सरकार पर अल्पसंख्यकों की उपेक्षा का इल्जाम लगाते हैं। दूसरी तरफ, यह पसमांदा मुस्लिम समुदाय के बीच पार्टी की स्वीकार्यता को बढ़ाने में मददगार होगा। साथ ही, यह कदम सरकार के “सबका विश्वास” के नारे को और मजबूती देगा।  

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वक्फ संशोधन कानून और मंत्रिमंडल में मुस्लिम प्रतिनिधित्व का मुद्दा आने वाले दिनों में और गर्माने वाला है। जहां विपक्ष इसे अपनी सियासी रोटियां सेंकने का मौका मान रहा है, वहीं बीजेपी इसे एक अवसर के रूप में देख रही है, ताकि वह अपनी समावेशी छवि को और पुख्ता कर सके। अब देखना यह है कि यह सियासी दांव कितना कारगर साबित होता है और क्या यह देश की राजनीति में एक नया अध्याय लिखेगा।  

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