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RBI Repo Rate : RBI के फैसले से लोन की EMI होगी आधी, जानिए किसे मिलेगा सबसे ज्यादा फायदा

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भारत में बैंकिंग व्यवस्था लोगों की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाती है। सरकारी और निजी बैंक आम लोगों को उनकी आवश्यकताओं के आधार पर लोन उपलब्ध कराते हैं। ये लोन पर्सनल, होम, कार, एजुकेशन और बिजनेस जैसे विभिन्न प्रकार के होते हैं, जो ग्राहकों के सिबिल स्कोर के आधार पर दिए जाते हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नियमों के तहत बैंकों द्वारा ब्याज दरें तय की जाती हैं, और ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ये दरें समय-समय पर बदलती रहती हैं। आने वाले समय में लोन की ब्याज दरों में कटौती की संभावना जताई जा रही है, जिससे मध्यम वर्ग के लिए अपनी जरूरतें पूरी करना आसान हो सकता है।

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अगले कुछ महीनों में बैंक लोन की ब्याज दरों में कमी देखने को मिल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रेपो रेट में कटौती कर सकता है, जिसका असर होम लोन, पर्सनल लोन, कार लोन और एजुकेशन लोन की दरों पर पड़ेगा। मध्यम वर्ग के लोग अक्सर अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बैंक लोन का सहारा लेते हैं, और रेपो रेट में बदलाव से उनकी EMI में राहत मिल सकती है।

RBI हर साल अपनी नीतिगत बैठकों में ब्याज दरों पर फैसले लेता है, और इस बार भी उम्मीद है कि रेपो रेट में 0.75% तक की कमी हो सकती है।

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हाल ही में देश में महंगाई दर में गिरावट देखी गई है, जो रेपो रेट कट के फैसले को प्रभावित कर सकती है। इस वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में खुदरा महंगाई 3.9% रहने का अनुमान है, जबकि पूरे साल की औसत महंगाई दर 4.7% रह सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अप्रैल, जून और अक्टूबर की RBI पॉलिसी बैठकों में हर बार 0.25% की कटौती संभव है।

महंगाई में कमी का मुख्य कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट है, खासकर सब्जियों जैसे आलू, टमाटर और लहसुन की कीमतें कम हुई हैं, जिससे 20 महीनों में पहली बार सब्जियों की महंगाई नेगेटिव हुई है।

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अगले वित्त वर्ष में भी महंगाई दर के स्थिर रहने की उम्मीद है, जो 4% से 4.2% के बीच रह सकती है। इस स्थिरता के चलते RBI अप्रैल और जून की बैठकों में रेपो रेट में कटौती पर विचार कर सकता है। अक्टूबर 2025 से रेट कट का नया चरण शुरू होने की संभावना है। पिछले महीने फरवरी में खुदरा महंगाई सात महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई, जिससे आम लोगों को राहत मिली है। यह बदलाव न केवल बैंकों की नीतियों को प्रभावित करेगा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी नई दिशा दे सकता है।

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