प्रदोष व्रत को शिव पूजन का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा-अर्चना करना शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन किए गए व्रत और शिव पूजन का कई गुना शुभ फल प्राप्त होता है।
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शिव पुराण के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा से हर तरह के रोग, शोक व दोष मिट जाते हैं। जानें पितृ पक्ष में रवि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के पूजन का शुभ मुहूर्त व व्रत का महत्व-
प्रदोष व्रत का महत्व
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत करने से आयु बढ़ती है। बीमारियों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और मनोकामना पूर्ण होती है।
त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल में शिव पूजन
शिव पुराण के अनुसार, कृ्ष्ण व शुक्ल पक्ष की तेरहवीं तिथि यानी त्रयोदशी पर भक्ति-भाव से भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में करनी चाहिए। हिंदू धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि प्रदोष काल में भगवान शिव रजत भवन में नृत्य करते हैं और प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं।
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प्रदोष काल क्या होता है
प्रदोष व्रत में पूजन सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व व सूर्यास्त के बाद 45 मिनट बाद तक की जाती है। इसे प्रदोष काल कहा जाता है।
रवि प्रदोष व्रत शिव पूजन मुहू्र्त
आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी 29 सितंबर को शाम 04 बजकर 47 मिनट पर प्रारंभ होगी और 30 सितंबर को शाम 07 बजकर 06 मिनट पर समाप्त होगी। द्रिक पंचांग के अनुसार, रवि प्रदोष पूजन का शुभ मुहू्र्त शाम 06 बजकर 08 मिनट से रात 08 बजकर 33 मिनट तक रहेगा।
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