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Rishikesh-Karnprayag Rail Project : पहली बार भारत में टीबीएम से सुरंग, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग प्रोजेक्ट ने रचा इतिहास

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Rishikesh-Karnprayag Rail Project : उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में रेल कनेक्टिविटी का सपना अब हकीकत की ओर बढ़ रहा है। रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) ने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना की सबसे लंबी सुरंग, टनल-8, में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है।

इस 14.57 किलोमीटर लंबी सुरंग में पहली बार टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) ‘शक्ति’ ने सफलतापूर्वक खुदाई पूरी की। यह भारत के पहाड़ी इलाकों में रेल सुरंग निर्माण में टीबीएम तकनीक का पहला उपयोग है, जो देश की इंजीनियरिंग क्षमता को वैश्विक मंच पर स्थापित करता है।

हिमालय में इंजीनियरिंग का कमाल

इस परियोजना की खासियत है इसकी जटिल भौगोलिक और तकनीकी चुनौतियां। टनल-8, जो देवप्रयाग और जनासू स्टेशनों के बीच स्थित है, भूकंप संवेदनशील सेसमिक जोन IV में बन रही है। 9.11 मीटर व्यास वाली यह सुरंग ‘शक्ति’ और ‘शिवा’ नामक दो अत्याधुनिक टीबीएम मशीनों की मदद से बनाई जा रही है।

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‘शक्ति’ ने अपनी पहली ब्रेकथ्रू हासिल कर ली है, जबकि ‘शिवा’ जुलाई 2025 तक अपना काम पूरा करेगी। इन मशीनों को मुंद्रा बंदरगाह से हिमालय की संकरी सड़कों और पुराने पुलों के रास्ते साइट तक लाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती थी। 

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस ऐतिहासिक पल को साइट पर देखा और मजदूरों व इंजीनियरों की मेहनत की सराहना की। उनके दौरे ने न केवल परियोजना को प्रेरणा दी, बल्कि यह भी दिखाया कि भारत सरकार पहाड़ी क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए कितनी गंभीर है।

उत्तराखंड के लिए एक नया युग

125 किलोमीटर लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन उत्तराखंड के पांच हिमालयी जिलों—देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गौचर और कर्णप्रयाग—को जोड़ेगी। इस रेल लाइन का 83% हिस्सा सुरंगों से होकर गुजरेगा, जिसमें 213 किलोमीटर से अधिक की मुख्य और निकास सुरंगें शामिल हैं। यह परियोजना न केवल यात्रा के समय को सात घंटे से घटाकर दो घंटे कर देगी, बल्कि हर मौसम में दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंच को भी आसान बनाएगी। 

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इस रेल लाइन से उत्तराखंड में पर्यटन और आर्थिक विकास को नया आयाम मिलेगा। यह चार धाम रेल परियोजना का भी हिस्सा है, जो तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए यात्रा को और सुगम बनाएगी। 

तकनीक और मेहनत का संगम

आरवीएनएल के चेयरमैन प्रदीप गौर ने इस उपलब्धि को भारत के पहाड़ी राज्यों में कनेक्टिविटी बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा, “यह केवल एक सुरंग की सफलता नहीं है, बल्कि यह भारत की इंजीनियरिंग ताकत और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करने की हिम्मत का प्रतीक है।” टीबीएम ‘शक्ति’ ने न केवल चट्टानों को तोड़ा, बल्कि एक बेहतर और जुड़े हुए उत्तराखंड का रास्ता भी खोला। 

इस परियोजना में कई भूवैज्ञानिक और लॉजिस्टिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हिमालय की जटिल भू-संरचना और टेक्टोनिक गतिविधियों के बीच सुरंग निर्माण के लिए उन्नत डिजाइन और लगातार भूवैज्ञानिक जांच की जरूरत थी। फिर भी, आरवीएनएल की टीम ने इसे संभव बनाया। 

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भारत के लिए एक नई शुरुआत

यह उपलब्धि केवल एक सुरंग की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक नए, मजबूत और कनेक्टेड भारत की शुरुआत है। यह परियोजना न केवल उत्तराखंड के लोगों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह दिखाता है कि जब मेहनत, तकनीक और दृढ़ संकल्प एक साथ आते हैं, तो कोई भी चुनौती असंभव नहीं रहती। 

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना भारत की रेल इंजीनियरिंग में एक नया अध्याय लिख रही है। यह न केवल हिमालयी क्षेत्रों को जोड़ेगी, बल्कि भारत की तकनीकी और आर्थिक प्रगति को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। 

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