आगरा :आगरा की सियासी गलियों में एक बार फिर हलचल मची है। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन अपने ताजा बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। इस बार उनका निशाना करणी सेना और कुछ संगठनों पर है, जिनके साथ उनकी तल्खी अब खुलकर सामने आ रही है। सुमन के बयानों ने न सिर्फ सियासी माहौल को गर्माया है, बल्कि इतिहास और धर्म के मुद्दों को भी छेड़ दिया है। आइए, जानते हैं कि इस बार क्या है पूरा मसला।
बयान, जिसने छेड़ी नई बहस
रामजी लाल सुमन ने हाल ही में आगरा में एक सभा को संबोधित करते हुए करणी सेना को खुली चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “19 अप्रैल को हमारे नेता अखिलेश यादव आगरा आ रहे हैं। मैं उन लोगों को साफ कहना चाहता हूं कि मैदान तैयार है, दो-दो हाथ करने को हम भी तैयार हैं।” सुमन यहीं नहीं रुके।
उन्होंने एक और विवादास्पद बयान दिया, “जो लोग कहते हैं कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर है, उन्हें मैं कहता हूं कि फिर हर मंदिर के नीचे बौद्ध मठ भी तो है।” इस बयान ने न सिर्फ सियासी हलकों में, बल्कि आम लोगों के बीच भी बहस छेड़ दी। सुमन का इशारा इतिहास और धर्म के उन दावों की ओर था, जो समय-समय पर सियासत को गरमाते रहे हैं।
राणा सांगा पर टिप्पणी और बवाल
यह पहली बार नहीं है जब सुमन अपने बयानों के चलते चर्चा में हैं। कुछ समय पहले उन्होंने राजपूत राजा राणा सांगा को लेकर एक टिप्पणी की थी, जिसने बड़ा विवाद खड़ा किया। सुमन ने अपने एक भाषण में राणा सांगा को ‘गद्दार’ कहकर संबोधित किया और दावा किया कि सांगा ने मुगल सम्राट बाबर को इब्राहिम लोदी के खिलाफ भारत बुलाया था।
इस बयान ने करणी सेना और कई राजपूत संगठनों को भड़का दिया। आगरा में सुमन के घर के बाहर विरोध प्रदर्शन हुए, नारेबाजी हुई और माहौल तनावपूर्ण हो गया। पुलिस को भारी तैनाती करनी पड़ी ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे। सुमन ने इस बयान पर माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया, जिससे मामला और उलझ गया।
सुरक्षा की मांग, हाई कोर्ट का रुख
विरोध और धमकियों के बीच रामजी लाल सुमन ने अब कानूनी रास्ता अपनाया है। उन्होंने अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। सुमन का कहना है कि उनके बयानों के बाद उनके घर पर हमले की कोशिश हुई और उनकी जान को खतरा है। उनके बेटे और पूर्व विधायक रणधीर सुमन भी इस याचिका का हिस्सा हैं। याचिका में 26 मार्च को आगरा में उनके आवास पर हुए कथित हमले का जिक्र है। सुमन ने कोर्ट से केंद्रीय सुरक्षा और हमलावरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। यह कदम उनके और करणी सेना के बीच तनाव को और गहरा सकता है।
इतिहास और सियासत का घालमेल
सुमन के बयानों का आधार इतिहास रहा है, लेकिन इसका असर आज की सियासत पर पड़ रहा है। उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था, “भारतीय मुसलमान बाबर को अपना आदर्श नहीं मानते। वे पैगंबर मुहम्मद और सूफी परंपराओं को मानते हैं।” फिर उन्होंने राणा सांगा और बाबर के गठबंधन का जिक्र करते हुए बीजेपी पर तंज कसा। सुमन का कहना था, “अगर बीजेपी कहती है कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है, तो फिर राणा सांगा के वंशज भी तो उतने ही जिम्मेदार हैं।” यह बयान न सिर्फ इतिहास की किताबों को खंगालने का मौका दे रहा है, बल्कि सियासी दलों के बीच नई जंग को भी हवा दे रहा है।
आगरा में सियासी सरगर्मी
सुमन के बयानों ने आगरा की सियासत को गरमा दिया है। एक तरफ समाजवादी पार्टी अपने नेता के समर्थन में खड़ी है, तो दूसरी तरफ करणी सेना और अन्य संगठन उनके खिलाफ लामबंद हैं। अखिलेश यादव की आगामी यात्रा को लेकर भी सियासी हलकों में चर्चा तेज है। सवाल यह है कि क्या सुमन का यह बयान सपा के लिए फायदेमंद होगा या फिर यह पार्टी को नए विवाद में उलझाएगा? फिलहाल, आगरा की गलियों में यह चर्चा हर जुबान पर है।
रामजी लाल सुमन का यह बयान नया नहीं है, लेकिन इसका असर निश्चित रूप से लंबा होगा। इतिहास और धर्म के मुद्दों को छूते हुए उन्होंने एक ऐसी बहस छेड़ दी है, जो सियासत से लेकर समाज तक को प्रभावित कर सकती है। उनकी सुरक्षा की मांग और कोर्ट का रुख इस मामले को और गंभीर बनाता है। अब देखना यह है कि यह विवाद कहां तक जाता है और इसका सियासी नफा-नुकसान क्या होगा।