सावन की दुर्गा अष्टमी 2024: सोमवार या मंगलवार, जानें सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

माना जाता है की इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ दुर्गा माता की उपासना करने से माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अगस्त के महीने में दुर्गाष्टमी की तिथि सोमवार से शुरू हो रही है। आइए जानते हैं अगस्त की मासिक दुर्गाष्टमी या सावन की दुर्गाष्टमी की सही डेट, पूजा-विधि, उपाय और शुभ मुहूर्त-

कब है सावन की दुर्गाष्टमी?

श्रावण, शुक्ल अष्टमी प्रारम्भ – 07:55 ए एम, अगस्त 12

श्रावण, शुक्ल अष्टमी समाप्त- 09:31 ए एम, अगस्त 13

उदया तिथि के अनुसार, 13 अगस्त के दिन मासिक दुर्गाष्टमी व्रत रखा जाएगा। 

पूजा के शुभ-मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त- 04:23 ए एम से 05:06 ए एम 

प्रातः सन्ध्या- 04:45 ए एम से 05:49 ए एम

अभिजित मुहूर्त- 11:59 ए एम से 12:52 पी एम 

विजय मुहूर्त- 02:38 पी एम से 03:31 पी एम

गोधूलि मुहूर्त- 07:02 पी एम से 07:24 पी एम 

सायाह्न सन्ध्या- 07:02 पी एम से 08:07 पी एम

अमृत काल- 01:10 ए एम, अगस्त 14 से 02:52 ए एम, अगस्त 14 

निशिता मुहूर्त- 12:04 ए एम, अगस्त 14 से 12:48 ए एम, अगस्त 14

रवि योग- 10:44 ए एम से 05:50 ए एम, अगस्त 14

मां दुर्गा पूजा-विधि 

1- स्नान आदि कर मंदिर की साफ सफाई करें

2- माता दुर्गा का जलाभिषेक करें

3- मां दुर्गा का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें

4- अब माता को लाल चंदन, सिंदूर, शृंगार का समान और लाल पुष्प अर्पित करें

5- मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें

6- पूरी श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की आरती करें

7- माता को भोग लगाएं

8- अंत में क्षमा प्रार्थना करें

उपाय- पढ़ें दुर्गा चालीसा…

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महा विशाला।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।

परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।

जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहुँ लोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।

रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

आभा पुरी अरु बासव लोका।

तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।

दुःख दरिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।

काम क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।

रिपु मुरख मोही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।।

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।

सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण॥

जय माता दी

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