Pradosh Vrat : सूर्य देव और भगवान शिव की कृपा पाने का सरल तरीका, जानिये क्यों रखा जाता है रवि प्रदोष व्रत?

धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। द्रिक पंचांग के अनुसार, 15 सितंबर दिन रविवार को भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोयदशी तिथि पड़ रही है।

इस दिन रवि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। कहा जाता है कि दीर्घायु और आरोग्यता का आशीर्वाद पाने के लिए रवि प्रदोष व्रत रखना चाहिए। वहीं, सभी माता-बहनों को ग्यारह या पूरे साल की 26 त्रयोदशी व्रत पूर्ण होने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए। आइए जानते हैं रवि प्रदोष व्रत की पूजन और उद्यापन की विधि…

भोलेनाथ की पूजन विधि :

प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठें।

स्नानादि के बाद शिवजी का ध्यान करें।

व्रत का संकल्प लें और शिवजी की पूजा करें।

सायंकाल पूजा की तैयार कर लें।

प्रदोष काल में शिवजी की पूजा आरंभ करें।

शिवजी के मंदिर जाएं और शिवलिंग पर जल बेलपत्र अर्पित करें।

इसके बाद शिवजी को फल,फूल,धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें।

शिवजी के बीज मंत्र ‘ऊँ नमः शिवाय’का रुद्राक्ष की माला से जाप करें।

संभव हो, तो ब्राह्मण को भोजन कराएं और क्षमतानुसार दान-दक्षिणा दें।

व्रत के उद्यापन की विधि:

प्रदोष व्रत का उद्यापन करने के लिए स्नानादि के बाद रंगीन वस्त्र से मण्डप बनवाएं। इसमें शिव-गौरी की प्रतिमा स्थापित करें और विधिवत पूजा करें। इसके बाग शिव-पार्वती के उद्देश्य से खीर से अग्नि में हवन करें। हवन करते समय ‘ऊँ उमा सहति शिवाय नमः’मंत्र से 108 बार आहुति देनी चाहिए।

इसके साथ ही ऊँ नमः शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए शंकरजी को निमित्त आहुति प्रदान करें। हवन के बाद क्षमतानुसार दान-पुण्य के कार्य करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं। ब्राह्मणों को आशीर्वाद लेने के साथ भोलेनाथ का ध्यान करते हुए व्रती को भोजन करना चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रदोष व्रत से दुख दूर होते हैं, आयु और धन में वृद्धि होती है। साथ ही जातक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

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