पत्थरों से निकलती है डमरू की ध्वनि, क्या आपने देखा है एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर

धार्मिक मान्यता है सावन मास में शिवजी की विधि-विधान से पूजा और सोमवार व्रत रखने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और महादेव अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और खुशहाली आशीर्वाद देते हैं। भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं।

भोलेनाथ के भक्त इस पवित्र माह में शिवजी के कई प्रमुख मंदिर में दर्शन करने जाते हैं और देशभर के शिव-मंदिरों में लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। मान्यता है कि इन शिवजी के इन मंदिरों में दर्शन करने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में खुशियां ही खुशियां आती है। इन्ही मे से हिमाचल प्रदेश में स्थित एक शिव मंदिर भी शामिल है।

हिमाचल प्रदेश में इस मंदिर को जटोली मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर की ऊंचाई सबसे ज्यादा है। इसे एशिया का सबसे ऊंचा मंदिर कहा जाता है। महाशिवरात्रि या सावन महीने में यहां लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं। आइए जानते हैं जटोली मंदिर से जुड़े कुछ खास बातें…

एशिया का सबसे ऊंचा जटोली शिव मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण दक्षिण-द्रविण शैली में कराया गया है। कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में लगभग 39 साल लगे थे। जटोली मंदिर का गुंबद 111 फीट ऊंचा है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए भक्तों को 100 सीढ़िया चढ़कर जाना पड़ता है।

मंदिर में स्फटिक मणि शिवलिंग स्थापित की गई है। इसके साथ ही मंदिर में शिव-गौरी की प्रतिमा भी है। मंदिर के ऊपरी छोर पर 11 फुट ऊंचा सोने का कलश स्थापित किया गया है। मान्यता है कि इस स्थल पर पहले पानी की समस्या थी। पानी की समस्या दूर करने के लिए स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने भगवान भोलेनाथ की कड़ी तपस्या की।

जिससे शिवजी ने प्रसन्न होकर अपने त्रिशूल से उस स्थान की जमीन पर प्रहार किया और वहां से पानी निकलने लगा,तब से लोगों को कभी भी पानी की समस्या नहीं हुई। भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर भी बहुत चमत्कारिक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर में लगे पत्तथरों को थपथपाने से डमरू जैसी आवाज आती है।

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