2016 के बाद वनाग्नि से राज्य में मौतों का यह आंकड़ा सर्वाधिक है। राज्य में अब तक आग से 1312 हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं।
मंगलवार को बारिश से पिथौरागढ़ और बागेश्वर के कुछ क्षेत्रों में राहत जरूर मिली, लेकिन राज्य के बाकी हिस्सों में दावानल बुझने का नाम नहीं ले रही है। कुमाऊं के बाद गढ़वाल मंडल में भी वायुसेना के हेलीकॉप्टर वनाग्नि बुझाने के लिए जुटे हुए हैं।
आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में पिछले साल जंगल की आग से तीन लोगों की मौत हुई थी। 2022, 2021 और 2020 में दो-दो लोगों ने जांन गंवाई थी। 2019 में एक मौत हुई। जबकि 2018 और 2017 में कोई मौत नहीं हुई। 2016 में छह मौतें पूरे सीजन में हुई थीं।
इस बार आधा फायर सीजन ही बीता है और छह लोगों की जान जंगलों की आग लील चुकी है। हालांकि, पौड़ी जिले में एक व्यक्ति की मौत को लेकर वन विभाग की ओर से स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा गया है।
390 मुकदमे दर्ज
राज्य में अब तक आग लगाने की घटनाओं को लेकर 390 मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं, जो राज्य बनने के बाद से अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है। राज्य बनने के बाद से आज तक कभी सौ से ज्यादा मुकदमे पूरे सीजन में जंगल जलाने के नहीं हुए। इस बार 60 से अधिक लोगों की पहचान कर उनको गिरफ्तार भी किया जा चुका है। यह कार्रवाई भी एक नया रिकार्ड है।
कानूनी कार्रवाई को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर धामी और मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने खासकर तौर सख्ती के निर्देश दिए थे। साथ ही नए विभागीय मुखिया डॉ. धनंजय मोहन ने भी अधिकारियों को निर्देशित किया था।
पहाड़ के शहरों में जनवरी में एक्यूआई का स्तर गुड से मॉडरेट था। अब मई में बढ़कर मॉडरेट से पुअर की स्थिति में पहुंच गया है। आग लगने की वजह से भी यह प्रदूषण का स्तर बढ़ा है।
डॉ. पराग मधुकर धकाते, सदस्य सचिव प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
हम अलर्ट हैं और अधिकारी कर्मचारी फील्ड में हैं। जंगल जलने का कारण लोगों की लापरवाही या शरारती तत्व हैं।
निशांत वर्मा, एपीसीसीएफ वनाग्नि प्रबंधन
2021 और 2016 में भी ली गई थी सेना की मदद
श्रीनगर। मई 2016 और अप्रैल 2021 में भीषण आग लगने पर वायुसेना की मदद ली गई थी। 2016 में पौड़ी जिले के रिजर्व फॉरेस्ट बुरी तरह से जले थे, जबकि 2021 में टिहरी जिले के कीर्तिनगर रेंज के रिंगोली व धारकोट और पौड़ी जिले के खिर्सू, पोखड़ा व दमदेवल क्षेत्रों में आग को वायुसेना के एमआई-17 से ही बुझाया गया था।