नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती देते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने कहा कि वकीलों और आम लोगों की राय न्यायिक कार्यवाही का आधार नहीं बन सकती।
सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के 8 मई के आदेश को चुनौती देते हुए बार एसोसिएशन ने अपनी अपील में कहा कि संवैधानिक न्यायालय में किसी भी मामले का निर्णय वैधानिक कानून या मामले में लागू पूर्व के फैसले के आधार पर मामले के गुण और दोषों की उचित जांच के आधार पर होती है। अपील में कहा गया कि कोई न्यायिक कार्यवाही जनमत सर्वेक्षण के आधार पर नहीं हो सकती।
उत्तराखंड हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव व अधिवक्ता सौरभ अधिकारी ने शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका दाखिल करते हुए, हाईकोर्ट के 8 मई के आदेश रद्द करने की मांग की है। साथ ही, जब तक याचिका पर सुनवाई नहीं हो जाती है, तब तक के लिए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की है।
न्यायिक कार्यवाही में जनमत का स्थान नहीं
याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के हाईकोर्ट को नैनीताल से स्थानांतरित करने के उद्देश्य से रजिस्ट्रार जनरल को उत्तराखंड के अधिवक्ताओं और बड़े पैमाने पर जनता से राय लेने का निर्देश दिया है ताकि न्यायिक कार्यवाही में इस तरह के लिए कोई दलील या प्रार्थना न की जा सके। याचिका में कहा कि इस तरह का आदेश कानूनी रूप से अनुचित है और न्यायिक कार्यवाही में जनमत संग्रह का कोई स्थान नहीं है।
हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशन का पक्ष नहीं सुना
याचिका में कहा गया कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बार एसो. का पक्ष सुने बगैर ही आदेश पारित किया, जबकि वह (बार एसोसिएशन) हितधारक होने के साथ प्रभावित पक्ष भी हैं। हाईकोर्ट ने 8 मई को पारित आदेश में अपने रजिस्ट्रार जनरल को हाईकोर्ट को नैनीताल से किसी अन्य जगह स्थानांतरित करने के बारे में वकीलों और आम लोगों की राय लेने का आदेश दिया है।
इस विशेष अनुमति याचिका में राज्य सरकार के अलावा, देहरादून के जिलाधिकारी सहित कई सक्षम अधिकारियों को पक्षकार बनाया है।