कई बड़ी योजनाओं का काम अधूरा होने के बावजूद प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट कंपनी (पीएमसी) को स्मार्ट सिटी लिमिटेड की ओर से 28 करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान कर दिया गया। ऑडिट रिपोर्ट में कई वित्तीय अनियमितताओं का उल्लेख किया गया है।
स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने 22 प्रोजेक्ट का काम पूरा करने के लिए पहले जून 2018 से अगस्त 2021 तक के लिए और बाद में सितंबर 2021 से सितंबर 2023 तक के लिए दो अलग-अलग कंपनियों के साथ अनुबंध किया।
पहली कंपनी को 17 करोड़ 62 लाख रुपये और दूसरी को 11 करोड़ 20 लाख रुपये का भुगतान किया गया। ऑडिट रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि योजनाओं की ठीक से मॉनीटरिंग नहीं होने, कई बड़ी योजनाओं का काम अधूरा होने के बावजूद पूरा भुगतान क्यों किया गया? लापरवाही पर जुर्माना क्यों नहीं लगाया गया? कुल मिलाकर रिपोर्ट में स्मार्ट सिटी लिमिटेड के भुगतान मॉडल को लेकर और भी कई सवाल उठाए गए हैं।
शुरू में ही आनन-फानन में हुआ काम स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की शुरुआत में ही आनन-फानन में योजनाओं के टेंडर जारी किए गए। ऐसे में योजनाबद्ध तरीके से काम नहीं हो पाया। योजनाओं की टाइमलाइन बार-बार बदलनी पड़ी। निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और कार्ययोजना के मुताबिक धरातल पर काम नहीं हो पाने को लेकर जनप्रतिनिधि, जनता की ओर से सवाल उठाए जा रहे हैं।
ऑडिट रिपोर्ट के प्रमुख बिन्दु
- स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने देरी वाले प्रोजेक्ट को लेकर कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, जुर्माना नहीं लगाया।
- स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने जिस कंपनी की डीपीआर को लेकर सवाल उठाए, बाद में उसे ही चाइल्ड फ्रेंडली सिटी प्रोजेक्ट का काम सौंप दिया।
- कंपनी की अनुबंध अवधि के पूरा होने के करीब होने के दौरान इसके खराब प्रदर्शन का मामला बोर्ड के ध्यान में लाया गया। उचित कार्रवाई जुर्माना लगाने का भी आदेश दिया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
- कंपनी को बिना सहायक दस्तावेजों के लाखों रुपये का भुगतान करने को लेकर सवाल उठाए गए हैं।
- कंपनी के स्टाफ को 34 लाख रुपये का भुगतान किया गया, जबकि वह उपस्थिति रजिस्टर के अनुसार उपस्थित नहीं थे।
- इलेक्ट्रिक बस प्रोजेक्ट के लिए कंपनी को ग्यारह लाख से ज्यादा का अतिरिक्त भुगतान किया गया।
- सीईओ स्मार्ट सिटी ने एक आईटी विशेषज्ञ का सीवी इस आधार पर खारिज कर दिया कि उक्त विशेषज्ञ की योग्यता आवश्यकता के अनुरूप नहीं थी। कंपनी के प्रतिनिधित्व के बाद डीएससीएल ने उसी आईटी विशेषज्ञ की तैनाती के लिए मंजूरी दी और कंपनी को 36 लाख रुपये का भुगतान किया।
- ऑडिट में पाया गया कि कंपनी को भुगतान परियोजनाओं की वास्तविक प्रगति के बजाय स्टाफ के पारिश्रमिक पर अधारित था। उसके कार्यकाल के पूरा होने पर पूरी राशि का भुगतान किया गया। जबकि कंपनी अपने कार्यकाल के दौरान केवल चार परियोजनाओं की निगरानी कर पाई।
- शेष प्रोजेक्ट की देखरेख के लिए 14.35 करोड़ की लागत से एक नई कंपनी के साथ अनुबंध किया गया। पिछली कंपनी के कार्यों का विश्लेषण नहीं किया। नई कंपनी का कार्यकाल पूरा होने के बावजूद तीन प्रमुख योजनाओं का काम अधूरा रह गया।
ऑडिट ज्यादातर आपत्तियां कंपनियों को लेकर हैं। कुछ अन्य आपत्तियां हैं। स्मार्ट सिटी लिमिटेड की ओर से प्रत्येक बिन्दु का विस्तार से जवाब दिया जा रहा है।
सोनिका, सीईओ स्मार्ट सिटी