इजराइल-हमास की जंग को कमोबेश एक महीने हो चुके हैं. इजराइली सेना हमास लड़ाकों को मिटाने की मंशा के साथ गाजा में घुस गई है. पूरे शहर में हर तरफ बमबारी हो रही है. इजराइल के साथ कोई मजबूती से खड़ा है तो वो है अमेरिका, जो गाजा में फिलहाल संघर्ष विराम के सख्त खिलाफ है.
इस युद्ध में चीन ने भी एंट्री की है, जो वैश्विक महाशक्ति और विकासशील देशों के चैंपियन के रूप में अपने आपको स्थापित करने की जद्दोजहद में जुटा है.
चीन की हालिया कूटनीतिक पहल और युद्ध पर उसके बयान मौजूदा संकट के समाधान में मध्यस्थता करने के उसके एजेंडा का हिस्सा है. युद्ध के बीच चीनी राजनयिक वांग यी अमेरिका भी पहुंचे जहां उन्होंने विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मुलाकात की. उन्होंने अपने इस दौरे के दौरान संकेत दिया कि चीन अमेरिका के साथ मिलकर मिडिल ईस्ट में शांति पहलों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है.
उन्होंने इजराइली और फिलिस्तीनी नेताओं से भी बात की. चीन उन देशों में शामिल है जो गाजा में संघर्ष विराम लागू करने की वकालत कर रहा है. आइए समझते हैं कि आखिर इजराइलज-हमास युद्ध से चीन क्या हासिल करना चाहता है?
इजराइल और फिलिस्तीनियों के साथ चीन के रिश्ते
पिछले कुछ सालों में इजराइल और फिलिस्तीनियों के साथ चीन के संबंधों में कई बदलाव आए हैं. चीन ने 1960 के दशक में फिलिस्तीनियों और अरब देशों का पक्ष लिया और फिलिस्तीनी लड़ाकों को मदद भेजी थी.
हालांकि, 1976 में माओत्से तुंग की मृत्यु के बाद, चीन ने अधिक संतुलित रुख अपनाया और दोनों पक्षों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की कोशिश की. राष्ट्रपति शी जिनपिंग के तहत यह नीति धीरे-धीरे बदल गई, जिन्होंने अरब देशों पर दबाव बनाने और चीन को इजराइल और फिलिस्तीनियों के बीच मध्यस्थ के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है.
इजराइल-गाजा युद्ध पर चीन का रुख
इजराइल-हमास की जंग पर चीन ने एक न्यूट्रल रुख अपनाने की कोशिश की है. हमलों के लिए हमास की सीधे तौर पर निंदा करने से बचते हुए चीन ने खासतौर पर नागरिक हताहतों को लेकर इजराइल की आलोचना की. साथ ही लगातार युद्धविराम की अपील कर रहा है.
चीन टू-स्टेट फॉर्मूले मान्यता देता है और फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों का समर्थन करता है. हालांकि, चीन ने कभी ये नहीं कहा है कि 1967 वाली सीमा के हिसाब से टू-स्टेट बनाना चाहिए, जो कि अरब मुल्क लगातार दोहरा रहे हैं. चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने फोर्स के ज्यादा इस्तेमाल और आम नागरिकों को निशाना बनाने की हमेशा ही निंदा की है.
मध्य पूर्व में चीन की चाहत
मध्य पूर्व में चीन की भागीदारी लगातार बढ़ रही है, जो राजनीतिक प्रभाव को अपने आर्थिक हितों के साथ जोड़ने की उसकी मंशा को दर्शाती है. इजराइल-गाजा युद्ध में शामिल होकर, चीन का लक्ष्य अरब देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना है. चूंकि, चीन अपने आपको एक वैश्विक शक्ति के रूप में देखता है. उसकी नजर अमेरिका के ‘सुपर पावर’ टैग पर है.
इस युद्ध में शांति की पहल करके, अपने आपको एक नेतृत्व के तौर पर स्थापित करके चीन दुनिया में सुपर पावर के तौर पर अपनी पहचान कायम करना चाहता है. हमास की खुली आलोचना ना करके चीन अरब मुल्कों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना चाहता है. इसके साथ ही वो सुपर पावर के रूप में अपनी भूमिका पर जोर देना चाहता है. चीन ने क्षेत्र में अपनी स्थिति को और मजबूत करते हुए गाजा को मानवीय मदद देने का भी वादा किया है.
चीन के रुख पर क्या कहते हैं इजराइल-फिलिस्तीन?
इजराइल के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने में चीन के आर्थिक हित हैं. हालांकि, पश्चिमी देशों पर वह फिलिस्तीनियों के साथ उत्पीड़न का आरोप लगाता है. चीन फिलिस्तीन के हितों की बात करता है. युद्ध शुरू होने के बाद से ही गाजा में शांति कायम करने की वकालत कर रहा है और इजराइल से युद्ध खत्म करने की अपील कर रहा है. इसके लिए इजराइल ने चीन की आलोचना भी की.
हमास को आतंकी संगठन नहीं बताने के लिए इजराइल ने यूनाइटेड नेशन में भी चीन की खुली आलोचना की. चीन इजराइल के ‘सेल्फ डिफेंस’ वाले तकिया-कलाम का भी समर्थन नहीं करता, बल्कि कहता है कि “सभी देशों को आत्मरक्षा का अधिकार है.” इस कूटनीति के साथ ही उसने साफ कर दिया कि वो फिलिस्तीन के हितों का सम्मान करता है, ताकि अरब मुल्कों में उसके प्रति एक पॉजिटिव संदेश जाए.
सऊदी अरब और ईरान के बीच चीन ने कराई बात
इस साल की शुरुआत में, चीन ने सात साल की राजनयिक दरार के बाद संबंधों को सामान्य बनाने के लिए ईरान और सऊदी अरब के बीच हाल ही में एक समझौते में मदद की है. चीन कई अरब मुल्कों का प्रमुख आर्थिक भागीदार है. उसके ईरान से घनिष्ठ संबंध हैं, सऊदी अरब के साथ भी ठीक-ठाक रिश्ता है.
दरअसल, चीन अपने आपको एक शांतिदूत के तौर पर स्थापित करने की कोशिश में है. रूस-यूक्रेन युद्ध में भी उसने अपने शांति का एजेंडा जाहिर किया था. सऊदी अरब और ईरान में युद्ध के बीच बातचीत होना चीन की ही मध्यस्थता का नतीजा है. शी जिनपिंग ने इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से भी मुलाकात की, तो फिलिस्तीनी अथॉरिटी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास की भी चीन में मेजबानी की.
इजराइल को अमेरिका का खुला समर्थन, चीन के लिए ब्लैंक स्पेस
एक बात गौर करने वाली है, वो ये कि मध्य पूर्व और खासतौर पर खाड़ी देशों ने अमेरिका और पश्चिमी देशों की काफी यातनाएं झेली हैं. मिडिल ईस्ट में अमेरिकी घुसपैठ का एक लंबा इतिहास है. इजराइल के साथ उसके सबसे अच्छे संबंध हैं, जिसकी रक्षा के लिए उसने अपने भारी और घातक हथियारों को मिडिल ईस्ट में तैनात कर दिया है.
इनके अलावा कमोबेश 15 अरब डॉलर की मदद का ऐलान भी किया है, जिसमें सैन्य मदद भी शामिल है. साथ ही आम नागरिकों पर गिराए जा रहे इजराइली बमों पर भी उसने आंखे मूंद रखी है. अरब मुल्कों में भी अमेरिका के प्रति कलह बढ़ रही है, जो चीन के लिए एक बड़ा ब्लैंक स्पेस मुहैया कराता है.